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[[Category:गज़ल]]
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सब लोग लिये संग-ए-मलामत निकल आये
किस शहर में हम अहल-ए-मुहब्बत निकल आये
सब लोग लिये संग-ए-मलामत निकल आये<br>अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही होकिस शहर में हम अहल-ए-मुहब्बत आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आये<br><br>
अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो<br>हर घर का दिया गुल न करो तुम के न जानेआँसू की जगह आँख किस बाम से हसरत ख़ुरशीद-ए-क़यामत निकल आये<br><br>
हर घर का दिया गुल न करो तुम के न जाने<br>किस बाम से ख़ुरशीदजो दरपा-ए-क़यामत पिन्दार हैं उन क़त्लगहों सेजाँ देके भी समझो के सलामत निकल आये<br><br>
जो दरपाऐ हमनफ़सों कुछ तो कहो अहद-ए-पिन्दार हैं उन क़त्लगहों से<br>सितम कीजाँ देके भी समझो के सलामत इक हर्फ़ से मुम्किन है हिकायत निकल आये<br><br>
ऐ हमनफ़सों कुछ तो कहो अहद-ए-सितम की<br>इक हर्फ़ से मुम्किन है हिकायत निकल आये<br><br> यारो मुझे मसलूब करो तुम के मेरे बाद<br>शायद के तुम्हारा क़द-ओ-क़ामत निकल आये<br><br/poem>
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