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सभवा बइठल रउरा बाबा कवन बाबा हो / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सभवा बइठल<ref>बैठे हुए</ref> रउरा<ref>आप</ref> बाबा कवन<ref>कौन</ref> बाबा हो।
बाबा लाबर<ref>माथे का केश</ref> मोरा छेँकले<ref> घेर लिया है</ref> लिलार<ref>ललाट</ref> करहुँ जग-मूँड़न हो॥1॥
झारि<ref>झाड़कर। कंघी देकर</ref> बान्हु<ref>बाँधो</ref> सम्हारि<ref>सँभालकर, सजाकर</ref> कवन बरूआ<ref>कुँवारा, उपनयन-संस्कार के योग्य बालक</ref> हो।
आवे दहु जेठ बइसाख, करहु जग मूड़न हे।
करबो<ref>करूँगा</ref> अलबेला के मूंड़न हे॥2॥

शब्दार्थ
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