भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ परल संझा आयल / चन्दरदास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्दरदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ परल संझा आयल, होरिल चलिए भेल ए।
ललना रे! बाट रे बटोहिया संग छुटल,
चिट्ठिया पहुँची गेल ए॥1॥
धन ूटल जन छूटल, तिरिया छुटियो गेल ए।
ललना रे! छुटि गेलै महल मकान से,
मुनिया उड़िये गेल ए॥2॥
भैया रोवे भौजी रोवे, सिर धुनि रोवे ए।
ललना रे! रोवेलै कुटुम्ब परिवार से,
बड़ी अजगुत भेल ए॥3॥
हित कुटुम्ब हिलि-मिलि आयल, से मतिया मिलावल ए।
ललना रे! लिये गेल नदिया किनार से,
काया उठावल ए॥4॥
काठ के पलंग बिछाय के, काया ओठगावल ए।
ललना रे! मुख में लगाये देल आग से,
दया नहीं राखल ए॥5॥
जरिये खोरिये काया फेकल, आपन पराया भेल ए।
ललना रे! लाख जतन के काया से,
संगहू न लागल ए॥6॥
‘चन्दर दास’ सोहर गावल, गावी के सुनाएल ए।
ललना रे! सपना भेल संसार से,
समुझि मन आयल ए॥7॥