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सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं / ग़ालिब

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सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर