Last modified on 3 अगस्त 2013, at 16:27

सियासतदाँ मुनाफे में इजाफा बाँट लेते हैं / शर्मिष्ठा पाण्डेय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 3 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शर्मिष्ठा पाण्डेय }} {{KKCatGhazal}} <poem> सिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सियासतदाँ मुनाफे में इजाफा बाँट लेते हैं
वे अक्सर टेबल के नीचे लिफाफा बाँट लेते हैं

मगरमच्छों की कोताही का होता ये नतीजा है
नदी के घाट पर मेंढक इलाका बाँट लेते हैं

जब इक टर्राये देखा-देखि सबकी फूलती गर्दन
कुँए के भीतर जाते ही बहनापा बाँट लेते हैं

उजाले में जो कीचड़ फेंकते दिखते गिरेबाँ पर
अँधेरी रात होते ही सरापा बाँट लेते हैं

शपा जाने दे जो होता है हो जाए, है, हमसे क्या
वह़ी कुछ लोग बलबे में स्यापा बाँट लेते हैं