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रसाई आशियाँ तक किस तरह बेबालो-पर होगी॥
फ़क़त इक साँस बाक़ी है, मरिज़ेमरीज़े-हिज्र के तन में।यह ये काँटा भी निकल जाये तो राहत से बसर होगी॥
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