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सुख उसके लिए रिक्त स्थान की तरह रहा / नीलोत्पल

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बचपन से
मैं उसे सुखिया मौसी कहता आया हूँ
पड़ोस की दुकान पर वह अनाज साफ़ करने आती है
माँ के पास वह अक्सर आती रोटी सब्ज़ी और पानी लेने
गेहूँ बीनते-फटकारते बतियाती रहती
घर-गृहस्थी के अंतहीन दुखों के बारे में

मेरे लिए यह उबाऊ था उन दिनों
वह यदा-कदा झिड़कती हमारे क्रिकेट खेलने पर

आज वह ख़ामोश बैठी है
विदा की बेटियों के लौट आने पर

उसके भीतर कुछ है
जो कुतर रहा है
बाक़ी बचे दिनों को

उसकी उदासी घायल समुद्र की तरह
भीतर हमला करती है
और वह बेसुध दुख के मुहाने की ओर
अकेली चलती चली जाती है

पीछे देखने पर
नज़र नहीं आते वे निशान
जो वह छोड़कर आ रही थी

देखते-देखते
सदी कई फाँक में बँट गई थी
और वह हर फाँक के साथ थोड़ा-थोड़ा

अलग हुए बेटों के साथ
जीने की उम्मीदें
विदा की बेटियों की जगह
रह गए घर के ख़ाली कोने
थे उसके हिस्से में
सुख जैसे उसके लिए रिक्त स्थान की तरह रहा
जिसे वह कभी नहीं भर पाई

मुझे दिखाई नहीं दिया
अनाज बीनते एक स्त्री
किस तरह ख़ारिज़ कंकड़ों में बटोर रही है
अपनी गृहस्थी का सामान
जैसे कोई नंगे पाँव दौड़ रहा हो धरती पर
बिना कहीं ठहर बिना कुछ पाए

जैसे यहीं वह अपनी पृथ्वी लेकर आई
यहीं उसने दुखों के साथ समझौता किया
यहीं वक़्त उस पर नमक और मरहम दोनों रगड़ता रहा

आँखों के नीचे की परछाइयाँ चुप थीं
लेकिन उसके हाथ तेज़ी से
चुनते रहे कंकर

जैसे गर्म लहरों का उफान
उठ रहा था किनारों की ओर
मैं था उस जगह
जहाँ धरती दौड़ रही थी
स्त्री के पैरों की गति से