सुन सखिया हे, दस सखिन सिर मटुकी रे मटुकी, गोरस बेचनहारी हे।
सिरी बिरिदावन कुंज गालिन में, जहाँ कृष्ण गउवा चराई हे।।१।।
सुन सखिया हे, दधि मोर खइले, मटुकी सिर फोड़ले, गेडुली जमुन दहुआई हे।
अंगन अंग कृष्ण चोली-बंद फारे, गजमोती देले छितराई हे।।२।।
सुन सखया, दधि मोर खइले, मटुकी सिर, फोड़े, गेडुली जमुन दहुआई हे।
अंगन अंग कृष्ण पिरती लगावे, ताही से नैना हमार हे।।३।।
सुन सखिया हे, किया तोरे वाला रे मतिया भुलइले, किया वन गउवा हेराई,
केकर पठवल अइल बाला, चली अइल इन्द्र फुलवारी हे।।४।।
सुन सखिया हे, नाहिन मोर नागिंन मतिया भुलइले, नहीं मोर बन गउवा हेराई,
गेंदा उदेसे अइलीं नागिन, चलि अइलीं इन्द्र फुलवारी हे।।५।।