Last modified on 12 मार्च 2014, at 00:23

सुबह की बयार / प्रेमशंकर रघुवंशी

रात की गाढ़ी नींद से
बासे हो चुके बदन में
ताज़गी भरती
सुबह की बयार
ओस की आभा से नहलाती है

फिर अरुणोदय के गुनगुने हाथों से
तन-मन को अँगोछती
अगले दिन
आने का वचन देकर
तेज़ी से चली जाती है ।