Last modified on 24 मई 2010, at 14:57

सुमन हमें सिखलाते हैं / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

काँटों में पलना जिनकी,
किस्मत का लेखा है ।
फिर भी उनको खिलते,
मुस्काते हमने देखा है ।।

कड़ी धूप हो सरदी या,
बारिश से मौसम गीला हो ।
पर गुलाब हँसता ही रहता,
चाहे काला, पीला हो ।।
 
ये उपवन में हँसकर,
भँवरों के मन को बहलाते हैं ।
दुख में कभी न विचलित होना,
सुमन हमें सिखलाते हैं ।।