Last modified on 23 अप्रैल 2017, at 19:39

सूर्यास्त / देवेन्द्र कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:39, 23 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिन डूबा-डूबा
डूब गए
गाँव, घर, नगर
सूबा-सूबा।

बूँद-बूँद रिस रही हवाएँ
बाहर-भीतर घिरी घटाएँ
सब कुछ लगता
ऊबा-ऊबा।

रात हुई पेड़ टँगे छाते
हरसिंगार अब पढ़े न जाते
अँधियारा अपना
मंसूबा।