Last modified on 13 मई 2014, at 09:49

सौन्दर्य का सबसे प्रिय गीत / वाज़दा ख़ान

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:49, 13 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सौन्दर्य का सबसे प्रिय गीत
नीले हरे रंग से गुंथे देह वृक्षों में
लहरा रहा है
ख़ामोश उदासी के साथ
अंगड़ाइयां रूप लेना चाहती हैं कि
आसमान की सादगी नदी के वक्राकार मोड़
घाटियों का अन्धेरा
अनहद नाद की धुन कोई अजपा जाप
उसकी रूह में पैबस्त है
आओ अपने मन की तूलिका का
एक स्ट्रोक (स्पर्श) लगाना
चिड़िया की आंखों पर
चहचहाहट के कितने पल बीते समय में
और आने वाले समय में गुन्जार होंगे
थोड़े डर के साथ थोड़ा फासले पर
थोड़ी सी बची जगह में मन कैनवस पर
साथ ही अपनी पहली ग़लती को बचाकर
रखना भविष्य के लिये
अभी कितने रंगों से बावस्ता
होना बाकी है.