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स्मृतियाँ- 5 / विजया सती

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जैसे पहाड़ पर बादल उमड़ते हैं
घाटी में कोहरा उतरता है
जैसे किसी सुबह जागने पर
बर्फ की चुप्पी घिरी मिलती है,
वैसे ही मेरे मन में
प्यार अकेलापन और थोड़ा-सा दुःख
उमड़ता है
उतरता है
घिरता है
जैसे पहाड़ पर बादल
बरस जाते हैं
कोहरा छँट जाता है और बर्फ भी
पिघल जाती है
वैसे ही मेरे मन का प्यार



जाता है
अकेलापन छँट जाता है
और दुःख भी पिघल जाता है
तुम्हारे पास आकर!