Last modified on 9 जून 2008, at 14:56

हत्यारे जब बुद्धिजीवी होते हैं / योगेंद्र कृष्णा

हत्यारे जब बुद्धिजीवी होते हैं

वे तुम्हें ऐसे नहीं मारते

बख्श देते हैं तुम्हें तुम्हारी जिंदगी

बड़ी चालाकी से

झपट लेते हैं तुमसे

तुम्हरा वह समय

तुम्हारी वह आवाज

तुम्हारा वह शब्द

जिसमें तुम रहते हो


तुम्हारे छोटे-छोटे सुखों का

ठिकाना ढूंढ लेते हैं

ढूंढ लेते हैं

तुम्हारे छोटे-छोटे

दुखों और उदासियों के कोने

बिठा देते हैं पहरे

जहां-जहा तुम सांस लेते हो


रचते हैं झूठ

और चढ़ा लेते हैं उस पर

तुम्हारे ही समय

तुम्हारी ही आवाज

तुम्हारे ही शब्दों के

रंग रस गंध


वे

तुम्हारे ही शब्दों से

कर देते हैं

तुम्हारी हत्या