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हमको सोने की क़लम‚ चाँदी की स्याही चाहिए / हरेराम समीप

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हमको सोने की क़लम‚ चाँदी की स्याही चाहिए
शेर कहने के लिए साक़ी‚ सुराही चाहिए

रख दिए हैं ताक़ पर सबने ही अब जलते सवाल
आज के फ़नकार को बस वाहवाही चाहिए

खून से लथपथ पड़ा है हर क़दम पर आदमी
क्रूरता की आपको अब क्या गवाही चाहिए

खौफ़ बेचा जा रहा‚ बाज़ार में कम दाम पर
क्योंकि ज़ालिम को‚ मुनाफ़े में तबाही चाहिए

सिर्फ़ कहने के लिए‚ जम्हूरियत है देश में
आज भी आवाम को‚ ज़िल्ले¬इलाही चाहिए

आपकी बातों में आकर‚ आपके हम हो लिए
क्या पता था‚ आपको भी बादशाही चाहिए