Last modified on 19 मार्च 2011, at 00:23

हम अपने दुख को गाने लग गए हैं / मदन मोहन दानिश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 19 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> हम अपने द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम अपने दुख को गाने लग गए हैं
मगर इसमे ज़माने लग गए हैं

किसी की तरबियत का है करिश्मा
ये आँसू मुस्कुराने लग गए हैं

कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं

ये हासिल है मेरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं

मेरी तन्हाइयाँ भी उड़ न जाएँ
परिंदे आने-जाने लग गए हैं

जिन्हें हम मंज़िलों तक ले के आए
वही रस्ता बताने लग गए हैं

शराफ़त रंग दिखलाती है दानिश
सभी दुश्मन ठिकाने लग गए हैं