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हम के ए दिल सुखन सरापा थे
हम लबो पे नहीं रहे आबाद
जाने क्या वाकया हुआ
क्यू लोग अपने अन्दर नहीं रहे आबाद
शहर-ए-दिन मे अज्ब मुहल्ले थे
उनमें अक्सर नहीं रहे आबाद