Last modified on 26 दिसम्बर 2011, at 12:42

हरापन नहीं टूटेगा / रमेश रंजक

टूट जायेंगे
हरापन नहीं टूटेगा

कुछ गए दिन
शोर को कमज़ोर करने में
कुछ बिताए
चाँदनी को भोर करने में
रोशनी पुरज़ोर करने में

चाट जाये धूल की दीमक भले ही तन
मगर हरापन नहीं टूटेगा

लिख रही हैं वे शिकन
जो भाल के भीतर पड़ी हैं
वेदनाएँ जो हमारे
वक्ष के ऊपर गढ़ी हैं

बन्धु! जब-तक
दर्द का यह स्रोत-सावन नहीं टूटेगा

हरापन नहीं टूटेगा