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हवाएँ चैत की / अज्ञेय

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:कोठरी में लौ बढ़ा कर दीप की
गिन रहा होगा महाजन सेंत की।
 
'''गुरदासपुर, अमृतसर (बस में), 23 अप्रैल, 1951'''
</poem>
गुरदासपुर, अमृतसर (बस में), 23 अप्रैल, 1951
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