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हुज़ूर आपने तो लिक्खा बार- बार नहीं / मनु भारद्वाज

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हुज़ूर आपने तो लिक्खा बार- बार नहीं
मगर इस ख़त पे हमें अब भी ऐतबार नहीं

उन्हें ख़ुशी में है महफ़िल सजाने क़ी आदत
हमें तो गम का भी इज़हार-इखित्यार नहीं

जहाँ पे जाऊं तेरी याद साथ चलती है
किसी तरह से भी इस दिल को अब करार नहीं

मेरे चेहरे को पढ़ें आप तभी समझेंगे
ये मेरा गम है सुबह का कोई अखबार नहीं

ये और बात है रिश्वत से घर चलता है
सुना हैं हमने तेरे मुहँ से लाख बार नहीं

खुदा कसम मैं हरइक लम्हा मुन्तज़िर हूँ तेरा
मैं तुझसे कह तो रहा हूँ कि इंतज़ार नहीं

'मनु ' मिले तुम्हे जितना भी रिज़्क करना सुकूँ
किसी भी काम से तुम होना शर्मसार नहीं