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रिम-झिम बरसे बूंद बदरवा / जयराम सिंह

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रिम-झिम बरसे बूंद बदरवा
सूझे नञ कुछ धोर अंधरवा
घरवा कैसे जाऊँ ना।

(1)
हमरा चुपके छोड़ हिरन हो गेल,
सब हमर सहेलिया,
हमहीं पड़लियो फंदवा हाय राम,
कांधा निठुर बहेलिया
करियो अब हम कौन उपाय निंगोड़ी बुधियो गेल हेराय।
कि कैसे पिंड छुड़ाऊँ ना घरवा कैसे जाऊँ ना॥

(2)
गहिड़ा में गिर गेला पर,
अंचरा हो गेल हल मैला,
साफ सुथर करते आ पहुंचल,
नटखट नटवर छैला,
गलहक अंगुरी तब फिर बाँह,
सोवारथ जनम मिटल सब चाह,
ओहे सुख कैसे पाऊँ ना।
घरवा कैसे जाऊँ ना॥