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350 / हीर / वारिस शाह

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असां मेहनतां डाढियां कीतियां नी गुंडीए खचरिये लुचिये जटीए नी
करामात फकीर दी देखनी एं खैर रब्ब तों संग सुपतीए नी
कन्न पाटयां नाल ना जिद कीजे अन्ने खूह विच झात न घतीए नी
मसती नाल तकबरी रात दिने कदी होश दी अख परतीए नी
कोई दुख ते दर्द ना रहे भोरा भाड़ा मेहर दा जिनां नूं घतीए नी
पढ़ फूकिगे इक अजमत सैफी<ref>आयत पढ़कर मंतर फूंकना</ref> जिन्न ते भूत दी पटीए नी
तेरी भाबी दे दुखड़े दूर होवन असी मेहर दे चा पलटीए नी
वारस मिठड़ा बोल ते मोम हो जा त्रिखा बोल ना काहली जटीए नी

शब्दार्थ
<references/>