Last modified on 3 जून 2010, at 08:14

अजनबी अपना ही साया हो गया है / कविता किरण

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:14, 3 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता किरण |संग्रह= }}{{KKVID|v=rKHfkWC212Y}} {{KKCatKavita}} <poem> अजनबी अप…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

अजनबी अपना ही साया हो गया है
खून अपना ही पराया हो गया है

मांगता है फूल डाली से हिसाब
मुझपे क्या तेरा बकाया हो गया है

बीज बरगद में हुआ तब्दील तो
सेर भी बढ़कर सवाया हो गया है

बूँद ने सागर को शर्मिंदा किया
फिर धरा का सृजन जाया हो गया है

बात घर की घर में थी अब तक 'किरण'
राज़ अब जग पर नुमायाँ हो गया है