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उत्तर-माला / ममता व्यास

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1.

जिन्दगी की किताब में हर सबक के साथ प्रश्न क्यों पूछे जाते हैं?
हर प्रश्न के उत्तर वक्त की, उत्तरमाला में क्यों छिपाए जाते है?
किताबों के भीतर ये उदास प्रश्न अकेले में बहुत घबराते हैं
अपने -अपने उत्तर को खोजते एक दिन खुद खतम हो जाते हैं।
दशरथ मांझी की तरह हर प्रश्न अपने उत्तर को खोजता है।
छैनी हथोडा लिए जैसे खुद को खोदता है।
क्यों हर प्रश्न अधूरा है अपने उत्तर के बिना
जब उत्तरमाला है , तो क्यों देखना है मना?

2.

कौन जाने वो मन की कौनसी तलहटी में जाकर छिपता है
जब बाहर नहीं है कोई चोट, तो भीतर क्यों दुखता है
ये प्यास, ये खोज , ये तलाश ख़तम नहीं होती
उत्तर मिल ही जाएगा अबकी , ये आस कम नहीं होती
जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है
जैसे हर उत्तर, प्रश्न का दूसरा हिस्सा है।
किताबें जानती हैं, ये सदियों का किस्सा है।

3.

रोज आधी रात को जिन्दगी की किताब से निकलकर
सभी उत्तर चुपके से उदास प्रश्नों के गले लग जाते होंगे।
उनके प्रेम को देखकर आसमान के तारे मुस्काते होगे
मछली तैरना भूलकर गहरे में डूब जाती होगी।
चांदनी आवाज देकर चाँद को बुलाती होगी
भोर होते ही उत्तर फिर उत्तरमाला में सिमट जाते है
प्रश्न फिर उदास होकर उत्तर की प्रतीक्षा में लग जाते है
हर प्रश्न उदास हैं, सिर्फ अपने उत्तर की आस है
एकदूजे के बिन अधूरे से,कहने भर को किताब में साथ हैं।
क्या हो, जो किसी दिन उत्तर नहीं मिले,
वक्त की उत्तरमाला के पृष्ट हवा ले उड़े
उफ़ ये ख्याल प्रश्नों को बहुत सताता है,
कभी -कभी कोई प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है।