Last modified on 20 मई 2015, at 17:24

ऊ जो आवेलें / मोती बी.ए.

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 20 मई 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऊ जो आवेलें त पलकन डहरि बहारेल
हमके देखेल त कोइला के राखि हो जाल
ऊ जो कहें कुछू थपरी बजा के नाचेल
हम जो बोलीं त सुनते जरि के खाक हो जाल
हमहूँ अदिमी हँई उनही एइसन
हमसे बेबाक आ उनसे निहाल हो जाल
एगो इ लति इहे हमरे में बड़ा भारीह
जवला एही से तू हमरे खिलाफ हो जाल
साँच बोली ले हम कीं ले जवन करीं ले
बुझाता एही से भभकेत आगि हो जाल
27.09.94