Last modified on 9 मई 2009, at 07:48

काश यह सन्दली शाम महक जाती/ विनय प्रजापति 'नज़र'

विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:48, 9 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' }} category: ग़ज़ल <poem> '''लेखन वर्ष:...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


लेखन वर्ष: 2004

काश यह सन्दली शाम महक जाती
सबा* तेरी ख़ुशबू वाले ख़त लाती

तुझसे इक़रार का बहाना जो मिलता
मेरी क़िस्मत शायद सँवर जाती

दीप आरज़ू का जलता है मेरे लहू से
काश तू इश्क़ बनके मुझे बुलाती

दूरियाँ दिल का ज़ख़्म बनने लगीं हैं
होता यह नज़दीकियों में बदल जाती

सबा: ताज़ा हवा, breeze