Last modified on 17 अक्टूबर 2012, at 14:24

क्रांति की लपट उठी / विमल राजस्थानी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:24, 17 अक्टूबर 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्रांति की लपट उठी
शांति की जली कुटी
तिनका-तिनका जल रहा
चिंगारियों का झुंड बाँधकर हुजूम चल रहा
क्रांति-दीप तरुण! आज द्वार-द्वार जल रहा
सुलग रहा हवन-कुंड आज राष्ट्र का, किशोर!
चाह रहे अगर देखना स्वतंत्रता का भोर
आहुतियाँ बन-बन कर तुम चले चलो जवान!
तुम बढ़े चलो महान!



“श्री ‘विमल’ राजस्थानी बिहार के एक किशोरवय सुकवि हैं जिनकी प्रतिमा शनैः शनैः किन्तु, सुनिश्चित क्रम से प्रस्फुटित होती जा रही है. प्रेम और पौरुष, दोनों ही आवेगों पर उनकी सामान रूप से, आसक्ति है. उनके प्रेम की दुनिया में फूल, नदी, नारी, किरण, नभ-नीलिमा, कोयल, चाँद और तारे आदि कितनी ही अपरूप विभूतियाँ जगमगाती और कलरव करती हैं.
       पौरुष के लोक में उन वीरों के मन का अंगारा चमकता है जो देश के लिए यातनाओं को हँस-हँस कर गले लगा रहे हैंl
       उनका स्वप्न कभी तो मिट्टी से जन्म लेकर मिट्टी की ओर उड़ता है और कभी आकाश में जन्म लेकर मिट्टी की ओर आता है. इसे मैं शुभ लक्षण मानता हूँ.
भाषा उनकी उर्दू-मिश्रित और सरल है. किन्तु, मैं आशा करता हूँ की वह अभी और निखर कर शक्ति और सुंदरता प्राप्त करेगी. शुभमस्तु!”
                                          
'दिनकर'
पटना
५-९-४५
आकाशवाणी, पटना
राष्ट्र-कवि रामधारी सिंह दिनकर