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तुम जहाँ भी हो / पल्लवी त्रिवेदी

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ये दुनिया इतनी भी बड़ी नहीं कि तुम्हारे होने को महसूस न कर पाऊँ
इस दुनिया में अभी इतना भी शोर नहीं कि तुम्हारी साँसों का उठना गिरना न सुन पाऊँ
दुनिया के तमाम मृगों में इतनी कस्तूरी नहीं कि तुम्हारी देह की खुशबू मुझसे छुपी रह सके
हाँ यकीनन तुम मेरी बाहों की हद में नहीं हो
नज़र की हद में भी नहीं और
तुम्हारे शहर का नाम,गली,मकान नंबर मेरी किसी डायरी में नहीं
तुम एक खोया हुआ पता हो
कविता की डायरी का गुम हुआ पन्ना हो
मगर पते नक्शों से नहीं ढूंढें जाते
क़दमों के निशानों से ढूंढ लिए जाते हैं
डायरी के गुम पन्ने अक्सर माज़ी की किसी गली में किसी शाख पर फड़फड़ाते मिल जाया करते हैं
ग़र मियाँ ग़ालिब कहते थे कि
मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
तो मैं कहती हूँ
मुहब्बत में नहीं है फर्क मिलने और बिछड़ने का
उसी के दिल में रहते हैं जिस दर से कभी निकले
मेरा मुट्ठी भर दिल जिसका पता हो
वो क्या ही लापता होगा
बहुत छोटी है जानां ये दुनिया तुम्हारे खोने के लिए
हमेशा मेरी रूह की हद में हो
तुम जहाँ भी हो