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नेपथ्य में / अंजना वर्मा

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ढाबे में,
कुर्सियों पर बैठे
सैकडों लोग अपनी भूख मिटा रहे हैं

वहीं नेपथ्य में कुछ बच्चे
अपनी छोटी-छोटी देहों से
लगे हुए हैं कामों में

छोटे-छोटे हाथ
बड़े हाथों को मात देते हुए
फुर्ती से नाच रहे हैं
काँच के गिलासों से
गिर रहा है भूरा पानी

खाने की उम्र में खिलाने का काम करते हुए
दिन-भर में सैकड़ों लोगों की थालियाँ धोते हैं
फेंकते हैं सब्जियों की अनखायी फाँकें
भात के-दाने
नालियों में

जाड़े में उनके पैर
पावरोटियाँ बन गये हैं
छिद्रयुक्त
मुँह से लेकर पैर तक, पूरी देह
अँधेरे में डूब गई है

टेबुल पर नाश्ता देते हुए
प्लेटों से चिपकी हुई हैं उनकी नजरें
जो लाख खींचने से भी छूटती नहीं
तश्तरियों के साथ
अपनी दृष्टि भी छोड़कर
वहीं मेज पर
वे वापस गायब हो जाते हैं नेपथ्य में

इन बच्चों की आँखों में
कोई सपना नहीं है
इनकी देह पर खड़ी है
हमारी दुनिया!