Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 17:31

प्यार एक स्मृति है : दो / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नहीं बहुत फर्क पड़ता है
तुम्हारी उपस्थिति से -
अब डरती हूं मैं
कि तुम्हारा नया रूप जिसमें अब
शायद ही शामिल हूं मैं
- या कि तिनके की नोक भर शामिल
मेरे उस पिरामिड को उलटकर न रख दे
जिसका आधार हमारी स्मृतियों ने रचा है।

पिरामिड की अभेद्यता में सुरक्षित
हमारी ही सही वह मम्मी
मैं हगिर्ज नहीं देना चाहती उसे छूकर
पुनर्जीवित करने का अधिकार तुमको।
ठीक है; मैं कब मुक्त हो पायी तुम्हारे बंधन से
पर सीख लिया है मैंने भी
बंदी रहते हुए बंदी बना लेने का कौशल

अब तो जान गये होओगे तुम कि
क्यों मैं कर देती हूं चिंदी-चिंदी
वे लिफाफे-बिना पढ़े
लिखावट देखकर तुम्हारी
या रख देती हूं फोन - निःशब्द
अगर उधर से आवाज तुम्हारी हो।