Last modified on 12 जनवरी 2015, at 20:31

बंक बिलोचन / सुजान-रसखान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 12 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह=सुजान-रसख...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सवैया

मैन मनोहर नैन बड़े सखि सैननि ही मनु मेरो हर्यौ है।
गेह को काज तज्‍यौ रसखानि हिये ब्रजराजकुमार अर्यौ है।।
आसन-बासन सास के आसन पाने न सासन रंग पर्यौ है।
नैननि बंक बिसाल की जोहनि मत्‍त महा मन मत कर्यौ है।।66।।

भटू सुंदर स्‍याम सिरोमनि मोहन जोहन मैं चित्‍त चोरत है।
अबलोकन बंक बिलोचन मैं ब्रजबालन के दृग जोरत है।।
रसखानि महावत रूप सलोने को मारग तें मन मोरत है।
ग्रह काज समाज सबै कुल लाज लला ब्रजराज को तोरत है।।67।।

आली लाल घन सों अति सुंदर तैसो लसे पियरो उपरैना।
गंडनि पै छलकै छवि कुंडल मंडित कुंतल रूप की सैना।
दीरघ बंक बिलोकनि की अबलोकनि चोरति चित्‍त को चैना।
मो रसखानि रट्यौ चित्‍त री मुसकाइ कहे अधरामृत बैना।।68।।

वह नंद को साँवरो छैल अली अब तौ अति ही इतरान लग्‍यौ।
नित घाटन बाटन कुंजन मैं मोहिं देखत ही नियरान लग्‍यौ।
रसखानि बखान कहा करियै तकि सैननि सों मुसकान लग्‍यौ।
तिरछी बरखी सम मारत है दृग-बान कमान मुकान लग्‍यौ।।69।।

मोहन रूप छकी बन डोलति घूमति री तजि लाज बिचारें।
बंक बिलोकनि नैन बिसाल सु दंपति कोर कटाछन मारैं।।
रंगभरी मुख की मुसकान लखे सखी कौन जु देह सम्‍हारे।
ज्‍यौं अरबिंद हिमंत-करी झकझोरि कैं तोरि मरोरि कैं डारैं।।70।।

आज गई ब्रजराज के मंदिर स्‍याम बिलोक्‍यौ री माई।
सोइ उठ्यौ पलिका कल कंचन बैठ्यो महा मनहार कन्‍हाई।।
ए सजनी मुसकान लख्‍यौ रसखानि बिलोकनि बंक सुहाई।
मैं तब ते कुलकानि तजौ सुबजी ब्रजमंडल मांह दुहाई।।71।।

मोहन के मन की सब जानति जोहन के मोहि मग लियौ मन।
मोहन सुंदर आनन चंद तें कुंजनि देख्‍यौ में स्‍याम‍ सिरोमन।
ता दिन तें मेरे नैननि लाज तजी कुलकानि की डोलत हौं बन।
कैसी करौं रसखानि लगी जक री पकरी पिय के हित को पन।।72।।

लोक की लाज तज्‍यौ तबहिं जब देख्‍यो सखी ब्रजचंद सलौनो।
खंजन मीन सरोजन की छबि गंजन नैन लला दिन होनो।
हेर सम्‍हारि सकै रसखानि सो कौन तिया वह रूप सुठोनो।
भौंह कमान सौं जोहन को सर बेधत प्राननि नंद को छोनो।।73।।