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बिम्ब / निदा नवाज़

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एक आवाज़
मेरे भीतर से आती हुई
यह तो परिचित भी नहीं
इसके साथ
कोई मित्रता भी नहीं
एक भटके बादल का टुकड़ा सा
या किसी टूटते तारे की
एक ख़ौफनाक चीख
अंतर के सन्नाटे को
चीरती हुई
यादों के सागर से
आती हुई
तुम्हारी आवाज़
और तुम
मेरा बिम्ब
कभी परिचित लगती हो
और कभी अपरिचित.