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अश्क़ में ढल के निकलता क्यों है / सिया सचदेव

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अश्क़ में ढल के निकलता क्यों है
दर्द ये क़ल्ब में पलता क्यों है

जबकि फ़ानी है जहाँ की हर चीज़
फिर ये इंसान मचलता क्यों है

कोई तो है जो बचाता है उसे
वर्ना फिर गिर के सम्भलता क्यों है

तुम न समझोगे दिया मिट्टी का
तेज़ आँधी में भी जलता क्यों है

जान बाक़ी न हो दीपक में तो फिर
ये धुवाँ उससे निकलता क्यों है

वो जो आता है मुहाफ़िज़ बन कर
वो दरिन्दे में बदलता क्यों है