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गरीबों के बारिश में घर गिर गये हैं / डी. एम. मिश्र

गरीबों के बारिश में घर गिर गये हैं
बड़े लोग फिर भी मज़े ले रहे हैं

कबूतर बेचारे कहाँ जाँय छुपने
कि जब बाज़ कम्बख़्त पीछे पड़े हैं

उधर उनके हाथों में लाठी व डंडे
इधर हम सड़क पर निहत्थे खड़े हैं

हुकूमत तुम्हारी महज़ चार दिन की
बग़ावत के पर्चे शहर में बँटे हैं

ग़रीबों के बच्चे बड़े सब्र वाले
खिलौने भी मिट्टी के अच्छे लगे हैं

उन्हें तुम दबाने की करते हो कोशिश
इरादे हमारे जो हमसे बड़े हैं