भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुलहिन सिंगार बरनन / रसलीन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रागिनी रामकली के भैरों

सुघर बने के काज आओ बनी को बनावैं,
आछे सगुन सों सब नारी मिलि आनंद मगल गावैं।
तेल फुलेल मेल उबटन में सकल अंग उबटावैं।
लाइ गुलाब नीर चंदन की चौकी पर अन्हवावें।
कोमल करन चरन में रचि पचि मेंहदी सुरँग रचावैं,
अगराग अँग लाइ लाइके रंग जोत उपजावैं।
चंदन डारि सँवारि सुगंधित बारन तेल लगावैं,
सतरँग पटियाँ काय सात लौ चोटी चार कहावैं।
मिसी लगाइ खवाइ पान मुख दसनन रँग जमावैं।
कजरारे नैनन काजर दै सोभा को अधिकावैं।
गाइ बजाइ बसन ब्याहो सब दुलही को पहिरावैं,
जटी जराइ अनूप भुखनन ठौर ठौर छवि छावैं।
फूलन कुरसी डारि गरे में सेहरा सीस बँध वैं,
एँहि विधि सकल सिँगार साजि कै ऊपर सारि उढ़ावैं।
तब सुभ घरी बिचारि बनी को बनरे आनि मिलावैं,
लखि रसलीन जो बनरा रीझै तब मन में सुख पावैं॥88॥