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मुरली ली, प्रिय छिप गये / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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पद-रत्नाकर / भाग- 2
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मुरली ली, प्रिय छिप गये, बिरहाकुल गंभीर।
मानिनिसी बैठी, विकल, रससागर के तीर॥