भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुरली ली, प्रिय छिप गये / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
मुरली ली, प्रिय छिप गये, बिरहाकुल गंभीर।
मानिनिसी बैठी, विकल, रससागर के तीर॥