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ज़िन्दगी / जय प्रकाश लीलवान

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ज़िन्दगी नहीं होता।
 बाज़ार की मृत -मखमल को ओढ़कर
देवताओं को दिए गए
अर्ध्यों की मूर्खता या ढोंग
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