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भीड़ में भी रहता हूँ वीरान के सहारे / रमानाथ अवस्थी
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,
2 जनवरी
<poem>
भीड़ में भी रहता हूँ वीरान के सहारे
जैसे कोई
मंदिर
मन्दिर
किसी गाँव के किनारे
जाना-अनजाना शोर आता बिन बुलाए
अनिल जनविजय
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