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14:06, 21 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुशांत सुप्रिय
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<poem>
हे राम!
त्रेता युग में आपने तो
रावण का वध कर दिया था
किंतु कलयुग में वह
फिर से जीवित हो कर
लौट आया है
अपने अनेक सिरों
और हाथों के साथ
हर साल
शोर और पटाखों के बीच
जो जलता है
वह रावण नहीं होता
वह तो महज़
एक पुतला होता है
हमारी बेवक़ूफ़ी का
जिसे जलता देख कर
हँसता है
हमारे भीतर सुरक्षित बैठा
असली रावण
</poem>