भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसा दशहरा / सुशांत सुप्रिय
Kavita Kosh से
हे राम!
त्रेता युग में आपने तो
रावण का वध कर दिया था
किंतु कलयुग में वह
फिर से जीवित हो कर
लौट आया है
अपने अनेक सिरों
और हाथों के साथ
हर साल
शोर और पटाखों के बीच
जो जलता है
वह रावण नहीं होता
वह तो महज़
एक पुतला होता है
हमारी बेवक़ूफ़ी का
जिसे जलता देख कर
हँसता है
हमारे भीतर सुरक्षित बैठा
असली रावण