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मृत्यु / हरीश करमचंदाणी

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एक दिन नश्वरता का होगा
भीगी पलकों
रुंधे कंठ और
हृदय में हाहाकार का होगा
शेष सबका होगा
बस तुम्हारा न होगा
वह एक दिन