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एक पुरबिहा का आत्मकथ्य / केदारनाथ सिंह
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(गीता शैली में)
पर्वतों में मैं
अपने गाँव का टीला हूँ
पक्षियों में कबूतर
भाखा में पूरबी
दिशाओं में उत्तर
वृक्षों में बबूल हूँ
अपने समय के बजट में
एक दुखती हुई भूल
नदियों में चंबल हूँ
सर्दियों में
एक बुढ़िया का कंबल
इस समय यहाँ हूँ
पर ठीक समय
बगदाद में जिस दिल को
चीर गई गोली
वहाँ भी हूँ
हर गिरा खून
अपने अंगोछे से पोंछता
मैं वही पुरबिहा हूँ
जहां भी हूँ।

