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मैं तुम्हारा / त्रिलोचन

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मैं तुम्हारा


मैं तुम्हारा

बन गया तो

फिर न हारा

आँख तक कर

फिरी थक कर

डाल का फल

गिरा पक कर

वर्ण दृग को

स्पर्श कर को

स्वाद मुख को

हुआ प्यारा


फूल फूला

मैं न भूला

गंध वर्णों

का बगूला

उठा करता

गिरा करता

फिरा करता

नित्य न्यारा

(रचना-काल -9-2-62)