भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विष्णु विनय 2 / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:26, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तारन अजामिल निवारने को भक्त भीर, असुर संघारन उपारन दुतरु के।
आरन-विलासी प्रभु दारन दनुज सदा, चारन सुकाम घेनु मारन मगरु के॥
वलि नृप-छारन कलंक-लंक जारन, सुदामा-रंक-भारन जो धारन पहरु के।
वारन उवारन धरनि जन वारन, अनन्द वार-पारन विहारन सगरु के॥2॥

