भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं त्या छतमुत तुतलाता हूँ / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:32, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुलिया दीदी!
छत-छत कहना
मैं त्या छतमुत तुतलाता हूँ?

छब तहते हैं मुझे तोतला,
तोई तहता अले छोतला!
धिछुम-धिछुम हो जाती मेरी
जब भी गुच्छा हो जाता हूँ।

डब्बू-बब्बू जो भी आता,
मुझ पल अपना हुतम तलाता,
मैं ही हूँ जो झतपत-झतपत
ताम छभी ते तल आता हूँ।