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पुरनका पाठ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

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कुवंर के टूटलोॅ ठाठ छै,
लोक कहै कबियाठ छै।
मुॅह मं एक्को दॉत नै दरहऽ
उमर तं लमसम साठ छै।
बात कै छै झरकल-झरकल
सुनी कं सब्भे काठ छै... कुवंर के टूटलॉ।

बिन नौता जैथौन बरियाती
सब बिज्जे मं खौथौन राती,
केकरो नै कुछ कहना मानै
बोलै बाला पं छाती तानै,
पान के थूक सं अंगा रंगलोॅ
ऐसन हुनकर डाट छै..., कुवंर के टूटलोॅ।

भूख लगै तं करथौन हल्ला
जों खैथौन तं डेका ढ़िल्ला,
चार बार टट्टी के कोटा
लं कं दौड़ै हांथ मं लोटा,
चिकनों चुबड़ो जोन दिन खैथौन
कोटा पूरे आठ छै..., कुवंर के टूटलोॅ।

सब के एक दिन ऐसने गत्ती
मरै सं पहिने मरथौन मत्ती,
आगू-आगू लक्षमी भागथौन
पीछू सं भागथौन सरसत्ती,
राम नाम सत कहथौन तखनी
यहा रटलका पाठ छै..., कुवंर के टूटलोॅ।