भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजपथ से परे / अभिनव अरुण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 18 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिनव अरुण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपाट सर्पीली सड़क के किनारे
औंधे मुंह गिरे पड़े हैं मार्क्स
उनपर विहंस रही हैं हरे गुलाबी नोटों की गड्डियां
स्याह डॉलर बंद गाड़ियों में सरपट निकल जा रहे हैं
कमसिन यूरो ने ढँक रखे हैं झीने स्कॉर्फ से अपने अंग प्रत्यंग
और हम
बड़े घर वाले
बड़े घर में खुश रहते हैं
छोटे घर वाले
छोटे घर में खुश रहने की कोशिश करते हैं
और बिना घर वाले ?
घर की उम्मीद में दुआ करते हैं
उन्हें न छोटे घर वालों से कोई शिकायत होती है
और न बड़े घर वालों से ईर्ष्या
नगर निगम की जे सी बी बदल देती है जिनके ठिकाने
बिल्डिंगों के पीछे फेंके तिरपाल को जो बना लेते हैं अपनी छत
रंग बिरंगे चीथड़े लपेट जिनके बच्चे करते हैं कैटवाक
फुलाते हैं फुलौने सफ़ेद और रंग बिरंगे
अलग अलग स्वाद के चिकनाई युक्त फुलौने
जिनकी घरनी के दोनों कानों में होते हैं अलग अलग पैटर्न के टॉप्स
और बदन पर सिले हुए अधोवस्त्र
जिन्हें नहीं आता जी एस टी का फुलफार्म
नोटबंदी का जिनके धंधे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
जो कोई अखबार नहीं पढ़ते
पालते हैं अपनी कोख में समय की नाजायज़ संतानें
राज पथ से परे