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कजली / 49 / प्रेमघन
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रंडियों की लय
अजहूँ न आयल हमार परदेसिया!
बन बन मोरवा बोलन लागे, पापी पपिहरा पुकार परदेसिया॥
घर घर झूला झूलत कामिनि, करि सोरहौ सिंगार परदेसिया॥
सावन बीते कजरी आई, मिली न खबरिया तोहार परदेसिया॥
छाये कहाँ प्रेमघन तुम, करि झूठे कौल करार परदेसिया॥89॥
॥दूसरी॥
बनारसी लय
नाहीं भूलै सूरति तोहार मोरे बालम॥
जैसे चन्द चकोर निहारै, तैसे हाल हमार मोरे बालम॥
और और जिय लागत नहिं करि, थाकी जतन हजार मोरे बालम॥
पिया प्रेमघन तुमरे बिन मन करत रहत तकरार मोरे बालम॥90॥

