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उमड़ी आँधी ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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उमड़ी आँधी
मथ डाला अम्बर
बिजली टूटी
फट गए बादल
सँभले नहीं
बह गए पल में
डूबी बस्तियाँ
चूर-चूर हो गया
मेरा भी मन
पाया था इतना ही।
सपने देखे
सबके चेहरों में
अपने देखे
सबका सुख माँगा
घृणा कुचली
किसी का दु:ख देखा
तो हिस्सा माँगा ,
मिल-बाँट लिया था
ज़हर मिला
सब खुद पी डाला
कुछ न मिला
चन्दन-सा जीवन
बना कोयला
फिर राख हुआ था
ख़ाक हुआ था
सब कुछ देकर
कुछ न पाया
आहें और कराहें
छलनी हुआ सीना ।

