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महँगाई / निकानोर पार्रा / श्रीकान्त दुबे
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रोटी की महँगाई के चलते रोटी और महँगी हुई जाती है
किराये के बढ़ते जाने से
शुरू होता है हर तरह के करों के बढ़ते जाने का सिलसिला
पहनने के कपड़ों की महँगाई के चलते
और महँगे हुए जाते हैं कपड़े
घिरते जाते हैं हम एक पतित घेरे में
अनवरत
भोजन बन्द है एक पिंजरे के भीतर।
थोड़ा ही सही, लेकिन भोजन है।
उसके बाहर देखें तो हर तरफ सिर्फ़ आज़ादी ही आज़ादी है।
मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : श्रीकान्त दुबे

